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Thursday, August 16, 2018

आखिर मान गए गोविंद सिंह कुंजवाल, प्रीतम सिंह ने लिया यूटर्न

आखिर मान गए गोविंद सिंह कुंजवाल, प्रीतम सिंह ने लिया यूटर्न

सांगठनिक चुनाव के बाद कांग्रेस में जूतों में दाल बंट रही है। इसका प्रमाण पूर्व विधानसभा अध्यक्ष विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल का रूठना तथा प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह का झूक कर उनका मनचाहा अध्यक्ष बना देना है। अब जिलाध्यक्ष मोहन सिंह मेहरा को हटाकर उनकी जगह कुंजवाल के करीबी पीतांबर दत्त पांडे को जिलाध्यक्ष बना दिया गया है। इसके बाद एक सप्ताह से मान-मनौव्वल का खेल खेल रहे विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल ने मामला वापस ले लिया है। हालांकि गोविंद सिंह कुंजवाल ने 11 अगस्त को पार्टी को अपना इस्तीफा भेज दिया था और जिलाध्यक्ष प्रकरण पर अपने खिलाफ षडयंत्र होने की बात कही थी। तब से लगातार उन्हें मनाने का प्रयास चल रहा था। यह प्रकरण इस बात को बताने को काफी है कि कांग्रेस में सबकुछ ठीकठाक नहीं है। भले ही हरीश रावत उत्तराखंड की दोनों विधानसभा सीटें हार गए हों लेकिन कांग्रेस आला कमान ने उन्हें राष्ट्रीय महामंत्री बनाकर उत्तराखंड की इकाई को यह संकेत दे दिया है कि वह पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है।
जिलाध्यक्ष चुनाव के मसले पर गोविंद सिंह कुंजवाल ने दो बजे प्रेस बुलाई थी। इससे पहले ही कांग्रेस संगठन ने अपनी गलती मान ली और उनके सहयोगी श्री पांडे को जिलाध्यक्ष पद सौंप दिया। पितांबर दत्त पांडे के जिलाध्यक्ष पद से हटाये जाने के बाद से ही गोविंद सिंह कंुजवाल नाराज चल रहे थे। किशोर उपाध्याय के अध्यक्ष पद से हटने के बाद लगा था कि कांग्रेस की गुटबंदी थम जाएगी लेकिन इस समय भी कांग्रेस में दो बड़े धड़े बन गए हैं, जिसमें नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश तथा दूसरे धड़े के नेता के रूप में किशोर उपाध्यक्ष एवं हरीश रावत है। गोविंद सिंह कुंजवाल भी इसी धड़े के प्रमुख नेताओं में से है जिन्होंने पार्टी को एक सप्ताह से पशोपेश में डाल रखा था। आखिरकार पार्टी को बचाने के लिए पार्टी को झुकना पड़ा और वही हुआ जो गोविंद सिंह कुंजवाल और हरीश रावत चाहते थे।
दोनो धड़े आमने-सामने आ गए थे। जिसके कारण मामला काफी संगीन हो गया था और अब इस फैसले से हरीश रावत गुट जीत गया है और प्रीतम सिंह को यूटर्न लेना पड़ा। जिससे स्थिति काफी गंभीर हो गई है। इस संदर्भ में पार्टी के मुख्य प्रवक्ता मथुरा दत्त जोशी का कहना है कि पार्टी की आंतरिक बांते आपस में बैठ कर सुलझाई जाती है और इसी प्रकार इस मामले को सुलझा लिया गया है। संगठन का मामला संगठन से सुलझाया। इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता।

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