मलिन बस्तियों पर सरकार के अध्यादेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय का निर्णय
राजधानी की अवैध बस्तियों को बचाने का अध्यादेश आ चुका है। उच्चतम न्यायालय ने भी उन्हें राहत दी है लेकिन नैनीताल उच्च न्यायालय ने नदियों के किनारे आवंटित पट्टों को निरस्त करने और छह महीने में उन्हें हटाने के निर्देश भू राजस्व विभाग को दिए है। जो इस बात का संकेत है कि कहीं न कहीं अवैध बस्तियों पर हथौड़ा जरूर चलेगा।
उच्च न्यायालय नैनीताल के इस निर्णय से सर्वाधिक प्रभावित रिस्पना और बिंदाल के क्षेत्र होंगे। इन नदियों के पांच किमी क्षेत्र में हजारों अवैध कब्जे हैं जिनमें नेताओं द्वारा बसाई गई बस्तियां तथा तमाम सरकारी भवन है। नदी के किनारे ही राजीव नगर भगत सिंह कालोनी, वाणी विहार, अधोईवाला, केदारपुरम सहित अनेक कालोनियां के अलावा दूरदर्शन केंद्र, दून विश्वविद्यालय, विधानभवन, नेहरू कालोनी थाना, सचिवालय कालोनी व आंगनवाडी केंद्र सहित अनेक भवन ऐसे हैं जो उच्च न्यायालय नैनीताल के इस निर्णय के तहत आते हैं। यदि हाईकोर्ट के आदेशों का पालन किया जाता है जिसमें कोर्ट ने सभी भूमि आवंटन के मामलों की जांच कर तीन माह में रिपोर्ट देने और अतिक्रमणकारियों को चिन्हित करने और बेदखल की कार्रवाई छह सप्ताह में करने के आदेश दिये हैं। इन नदियों के किनारे बसी बस्तियों को हटाया जाना अब तय हो चुका है।
जून मेें हाईकोर्ट द्वारा राजधानी दून के अतिक्रमण को चार सप्ताह में हटाने के निर्देश दिये गये थे जिस पर शासन प्रशासन द्वारा अब तक सिर्फ औपचारिक कार्रवाई करते हुए मुख्य सडकों से ही अवैध अतिक्रमण हटाया जा सका है। नगर निगम द्वारा अवैध कालोनियों में रहने वालों को नोटिस जारी करने की कार्रवाईयों के बावजूद भी यहां अतिक्रमण हटाने का काम जनप्रतिनिधियों के विरोध के कारण नहीं किया जा सका है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लोगों की आपत्तियां सुनने के लिए समय दे दिया था जिससे यह मामला अधर में लटक गया और इसी बीच सरकार ने अध्यादेश लाकर इन बस्तियों को उजडने से बचा लिया था। भले ही अतिक्रमण हटाओ अभियान में इन बस्तियों को राहत मिल रही हो लेकिन अब नदियों किनारे भूमि आवंटन और पट्टों को रद्द किये जाने के निर्णय से एक बार फिर इन पर कार्रवाई किये जाने का रास्ता साफ हो गया है।
भले ही सरकार की रिवर फ्रंट डवलपमेंट योजना इस काम को न कर पाई हो या फिर सरकार ने अतिक्रमण हटाओ अभियान को ठेंंगा दिखाते हुए इन कालोनियों को बचा लिया गया हो लेकिन नदियों के किनारे बसी इन बस्तियों और अवैध निर्माणों को बचा पाना अब एक बडी चुनौती होगा।
उच्च न्यायालय नैनीताल के इस निर्णय से सर्वाधिक प्रभावित रिस्पना और बिंदाल के क्षेत्र होंगे। इन नदियों के पांच किमी क्षेत्र में हजारों अवैध कब्जे हैं जिनमें नेताओं द्वारा बसाई गई बस्तियां तथा तमाम सरकारी भवन है। नदी के किनारे ही राजीव नगर भगत सिंह कालोनी, वाणी विहार, अधोईवाला, केदारपुरम सहित अनेक कालोनियां के अलावा दूरदर्शन केंद्र, दून विश्वविद्यालय, विधानभवन, नेहरू कालोनी थाना, सचिवालय कालोनी व आंगनवाडी केंद्र सहित अनेक भवन ऐसे हैं जो उच्च न्यायालय नैनीताल के इस निर्णय के तहत आते हैं। यदि हाईकोर्ट के आदेशों का पालन किया जाता है जिसमें कोर्ट ने सभी भूमि आवंटन के मामलों की जांच कर तीन माह में रिपोर्ट देने और अतिक्रमणकारियों को चिन्हित करने और बेदखल की कार्रवाई छह सप्ताह में करने के आदेश दिये हैं। इन नदियों के किनारे बसी बस्तियों को हटाया जाना अब तय हो चुका है।
जून मेें हाईकोर्ट द्वारा राजधानी दून के अतिक्रमण को चार सप्ताह में हटाने के निर्देश दिये गये थे जिस पर शासन प्रशासन द्वारा अब तक सिर्फ औपचारिक कार्रवाई करते हुए मुख्य सडकों से ही अवैध अतिक्रमण हटाया जा सका है। नगर निगम द्वारा अवैध कालोनियों में रहने वालों को नोटिस जारी करने की कार्रवाईयों के बावजूद भी यहां अतिक्रमण हटाने का काम जनप्रतिनिधियों के विरोध के कारण नहीं किया जा सका है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लोगों की आपत्तियां सुनने के लिए समय दे दिया था जिससे यह मामला अधर में लटक गया और इसी बीच सरकार ने अध्यादेश लाकर इन बस्तियों को उजडने से बचा लिया था। भले ही अतिक्रमण हटाओ अभियान में इन बस्तियों को राहत मिल रही हो लेकिन अब नदियों किनारे भूमि आवंटन और पट्टों को रद्द किये जाने के निर्णय से एक बार फिर इन पर कार्रवाई किये जाने का रास्ता साफ हो गया है।
भले ही सरकार की रिवर फ्रंट डवलपमेंट योजना इस काम को न कर पाई हो या फिर सरकार ने अतिक्रमण हटाओ अभियान को ठेंंगा दिखाते हुए इन कालोनियों को बचा लिया गया हो लेकिन नदियों के किनारे बसी इन बस्तियों और अवैध निर्माणों को बचा पाना अब एक बडी चुनौती होगा।
No comments:
Post a Comment